संपत्ति अधिकार: भारत में संपत्ति के बंटवारे को लेकर देशभर में कई तरह के कानून बनाए गए हैं, जिनके बारे में 90 फीसदी लोगों को जानकारी नहीं है। इसी वजह से देशभर में संपत्ति से जुड़े विवादों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारतीय संस्कृति में बेटी को देवी का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जब संपत्ति के बंटवारे की बात आती है तो कई बार लोग अपने पैर पीछे खींच लेते हैं। संपत्ति पर बेटियों के अधिकार को लेकर कई गलतफहमियां हैं, जिसके चलते अक्सर बेटियां अपने अधिकारों से वंचित रह जाती हैं।
बेटियों के संपत्ति अधिकार की कानूनी स्थिति
भारत में शुरू से ही बेटियों को संपत्ति में हिस्सा देने में हिचकिचाहट रही है। इसका एक बड़ा कारण यह था कि पहले इस पर कोई स्पष्ट कानून नहीं था। हालांकि, अब बेटियों को संपत्ति में उनका अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए गए हैं। 1956 में लागू हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को 2005 में संशोधित कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिए गए। यह कानून खास तौर पर संपत्ति पर दावों और अधिकारों के लिए बनाया गया था।
2005 का संशोधन
2005 में भारतीय संसद ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया, जिसने बेटियों के अधिकारों को और मजबूत किया। इस संशोधन के बाद बेटियों को पिता की संपत्ति पर बेटे के समान अधिकार मिले। यह संशोधन बेटियों को जन्म से ही हिंदू सहदायिक के रूप में अधिकार देता है, जिसका दावा 2005 में संशोधन की तिथि से ही किया जा सकता है। इससे पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकारों को लेकर कोई संदेह नहीं रह गया है।
बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा कब नहीं मिलता?
ऐसी कई स्थितियाँ होती हैं, जहाँ बेटियों को संपत्ति में अपना हिस्सा पाने का अधिकार नहीं मिलता। इसका एक मुख्य कारण यह है कि पिता अपनी मृत्यु से पहले अपनी पूरी संपत्ति अपने बेटे को हस्तांतरित कर देता है। इस स्थिति में बेटी को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता। हालाँकि, यह केवल पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर लागू होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में ही अपनी स्व-अर्जित संपत्ति का निपटान कर देता है, तो उस स्थिति में बेटियाँ उस पर दावा नहीं कर सकतीं। पैतृक संपत्ति पर बेटियों का अधिकार यदि पिता को अपने पूर्वजों से संपत्ति प्राप्त हुई है, यानी वह पैतृक संपत्ति है, तो पिता अपनी इच्छा से उसे किसी को नहीं दे सकता। इस स्थिति में बेटी और बेटे दोनों का समान अधिकार होता है। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पिता के पिता या पूर्वजों से विरासत में मिलती है। इस प्रकार की संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है, और इसे समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए। इसी कारण पैतृक संपत्ति पर बेटियों के अधिकार को कानून द्वारा संरक्षित किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय 11 अगस्त 2020 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) एससी 641 के मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गया। इस निर्णय में कहा गया कि बेटी जन्म से ही सहदायिक संपत्ति की हकदार होती है और संशोधन की तिथि (9 सितंबर 2005) को पिता जीवित है या नहीं, यह अप्रासंगिक है। यह फैसला बेटियों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए।
विभिन्न धर्मों में महिलाओं के संपत्ति अधिकार
भारत में अलग-अलग धर्मों के अनुसार संपत्ति के अधिकारों में अंतर है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पैतृक संपत्ति में बेटी को अधिकार दिए जाने का प्रावधान है। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी पैतृक संपत्ति पर बेटी और परिवार की अन्य महिलाओं के अधिकार का प्रावधान है। हिंदू उत्तराधिकार में भी महिलाओं को संपत्ति में अधिकार मिलने का प्रावधान था, लेकिन यह पति और उनकी (पति की) पैतृक संपत्ति पर था। वर्तमान में यह अधिकार पिता की संपत्ति पर भी मिलता है।
बेटियों के अधिकारों का महत्व
संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार देना न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक न्याय का भी एक पहलू है। इससे बेटियों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है और वे अपने जीवन में आत्मनिर्भर बन सकती हैं। संपत्ति में समान हिस्सेदारी से महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक स्तर भी ऊपर उठता है। यह लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करता है।
संपत्ति विवाद से बचने के उपाय
संपत्ति विवाद से बचने के लिए परिवारों को अपनी संपत्ति का स्पष्ट बंटवारा कर देना चाहिए। वसीयत बनाना इसके लिए एक अच्छा तरीका है, ताकि संपत्ति के बंटवारे में कोई विवाद न हो। परिवार के सभी सदस्यों को संपत्ति के बारे में पारदर्शिता रखनी चाहिए और कानूनी प्रावधानों की जानकारी होनी चाहिए। संपत्ति विवाद से बचने के लिए कानूनी सलाह लेना भी जरूरी है, ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो।
अस्वीकरण
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। संपत्ति के अधिकार से संबंधित कानून और नियम समय के साथ बदल सकते हैं। इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य है और किसी व्यक्ति विशेष के मामले में भिन्न हो सकती है। किसी भी संपत्ति विवाद या कानूनी मामले में, व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुरूप योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर लिए गए किसी भी निर्णय के लिए लेखक या प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे।